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शिवलिंग (Shivling) पर क्यों नहीं चढ़ाई जाती है तुलसी (Basil),जानिए वजह



वैसे तो हम सभी जानते है कि भगवान शिव के पूजन में तुलसी का इस्तेमाल नहीं किया जाता है, लेकिन क्या आप जानते है कि ऐसा करने के पीछे क्या कारण है, क्यों भगवान शिव के ही पूजन में तुलसी का प्रयोग निषेध माना गया है। तो आईय जानते हैं शिव पूजन में तुलसी के प्रयोग नहीं करने के पीछे की पौराणिक कथा...


पौराणिक कथा के अनुसार जालंधर नामक राक्षस भगवान शिव का अंश था, शिवांश होने के कारण उसमें भगवान शिव के समान ही शक्ति और ऊर्जा थी, उसे अपनी वीरता पर बड़ा अभिमान था और वह भगवान शिव को अपना सबसे बड़ा शत्रु मानता था। भगवान शिव का शत्रु होने से वह महादेव से युद्ध करके उनका स्थान प्राप्त करना चाहता है। माना जाता है कि अमर होने के लिए उसने वृंदा नाम की कन्या से विवाह किया।

वृंदा ने पूरी जिदंगी पतिव्रता धर्म का पालन किया। इस कारण उसे सबसे पवित्र माना जाता है। जालंधर को विष्णु जी के कवच की वजह से अमर होने का वरदान मिला हुआ था। मगर राक्षस जाति का होने से जालंधर देवताओं पर राज जमाना चाहता था। इसलिए उसने शिव जी को युद्ध करने की चुनौती दी। मगर वृंदा के पतिव्रता होने के कारण उसे मार पाना मुश्किल हो रहा था। इसके चलते भगवान शिव और विष्णु जी ने उसे मारने के लिए एक उपाय सोचा। सबसे पहले तो भगवान विष्णु से जालंधर कवच ले लिया। उसके बाद जालंधर की अनुपस्थिति में वृंदा की पवित्रता को भंग करने के लिए उनके महल में जालंधर का रूप धारण कर पहुंचे। इस तरह वृंदा का पति धर्म भंग होते ही जालंधर का अमरतत्व का वरदान भी खत्म हो गया। इस तरह भगवान शिव ने उसे मार दिया। जब वृंदा को इस बात का पता चला कि उससे धोखा हुआ है तो उसने क्रोध में आकर भगवान शिव को श्राप दिया कि उनकी पूजा में कभी भी तुलसी की पत्तियां नहीं इस्तेमाल की जाएंगी।

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